जल (water)
अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बल-प्रदम् ।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम् ॥
अर्थात् :-
अजीर्ण में भोजन न करके केवल जल पीना औषध का काम करता है, भोजन पच जाने पर अर्थात् भोजन करने के 1 घण्टे बाद जल का सेवन करने से पाचन में बाधा उत्पन्न न करने के कारण वह बलदायक होता है। भोजन के बीच में घूंट-घूंट करके पिया हुआ जल भोजन में रुचि उत्पन्न करने के कारण अमृत के समान गुणकारी होता है और भोजन करके तुरन्त सेवन किया हुआ जल पाचक रसों को पतला तथा भोजन को बहुत शीघ्र महास्रोत में नीचे जाने के कारण विष के समान हानिकारक है।
अर्थात..खाने से पहले पानी ना पिये उससे वजन कम होता है..
खाना खाते समय थोडा-थोडा यज्ञ मे आहुती समान जल पिये
और भोजनोपरान्त तुरंत वारी सेवन ना करे वह विष समान होता है
तथा प्रातकाल मे उठते अत्यधिक मात्रा मे जल सेवन ना करे..!
योग शास्त्र नुसार गुनगुना पानी मुख शुध्दी और आंत्र शुध्दी के लिए थोडा (अंदाज 50 मिली) जल ले सकते है
कितना पानी पिना जरुरी है?
प्यास लगे जल पान करे जितनी अपनी तृष्णा है उतना ही थोडा जल ले !
शांत चित्त से बैठकर जल पान करे तथा जल्द बाजी और जल पान करते समय बाते ना करे..!
यही बात अन्नपान मे ध्यान रखे,शांत चित्त से अन्न आस्वाद ले कर जितनी जिव्हा की भुख है और तृष्णा है उतना ही अन्न और जलपान करे...!!
जठर पुरा भरे इतना जल और अन्नपान ना करे..!
जठर मे 1 भाग अन्न ,1भाग पानी और 1भाग वायु के लिए रखे नही तो अजीर्ण, मेद रोग, ह्रदय रोग ऐसी व्याधीया जकड़जाती है !
दिन भर मे जब भी प्यास लगे थोडा थोडा जल सेवन करे ,भले उसे बार-बार क्यो ना पिना पडे..लेकिन दिन की घडी को समझ कर सुर्य को नमन कर जल सेवन करे..!
सुर्योदय से लेकर सुर्यास्त तक पानी का सेवन जैसे प्यास लगे वैसे करे..!
सुर्यास्त होते ही निशाभोजन याने रात्री भोजन दिन भोजन के अर्ध मात्रा मे भोजन करे तथा रात्री भोजन के 1 घंटे बाद जल सेवन करे याने 7 बजे भोजन के बाद 8 बजे जल सेवन करे उस पश्चात रात्री मे जलपान ना करे !
उस कारण प्रमेह डायबिटीज मुत्र विकार आदी रोग उत्पन्न होते है
जल पान अमृत मय औषधी है..
सिर्फ गरम पानी पिना रोग निवारण करता है..जिसे हम लंघन कहते है..!
लंघन अजिर्ण,आम,ज्वर का नाश करके शरीर मे पियुष की याने ऑक्झीजन की निर्मिती कर नए जीवनपेशीयो की निर्मिती करता है..!
याने कॅन्सर जैसे जीर्ण व्याधीयो मे भी गुनगुना पानी लंघन स्वरुप काम करता है...!
जल संजीवनी है...!!उसे सही इस्तेमाल करे..अधिक जानकारी के लिए आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह लिजिए
शरीर प्रकृती की भिन्नता के स्वरुप जल सेवन मे भिन्नता दिखाई देती है..
याने वातप्रकृती,पित्तप्रकृती या कफ प्रकुती मे जल और अन्नसेवन मे भिन्नता दिखाई देती है..
तो जरुर एकबार प्रकृती जान लिजीए..
वैद्य के पास जाकर अपनी प्रकृती जान लिजीए..जैसे ब्लड ग्रुप बदल नही सकता वैसेही शरीर प्रकृती बदल नही सकती..!
इसलिए हमेशा आयुर्वेद अस्पताल मे जाने के बाद प्रथम अपनी प्रकृती जानीए .
आपका
वैद्य सचिन मारुती भोर
सुलभास् श्री साईनाथ आयुर्वेद व पंचकर्म क्लिनीक रावेत पुणे.
9821832578
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